Thursday, July 14, 2022

शिव मानस पूजा

शिव मानस पूजा एक सुंदर भावनात्मक स्तुति है,जिसमे मनुष्य अपने मनके द्वारा भगवान् शिव की पूजा कर सकता है।
शिव मानस पूजा स्तोत्र द्वारा कोई भी व्यक्ति बिना किसी साधन और सामग्री के भगवान् शिव की पूजा संपन्न कर सकता हैं।
शास्त्रों में मानसिक पूजा अर्थात मन से की गयी पूजा,
श्रेष्ठतम पूजा के रूप में वर्णित है। 

भगवान् शिव के लिए धूप, दीप, आसन 

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं,
नानारत्नविभूषितं मृगमदा मोदाङ्कितं चन्दनम्।
जाती-चम्पक-बिल्व-पत्र-रचितं पुष्पं च धूपं तथा,
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥ 

रत्नैः कल्पितम-आसनं – यह रत्ननिर्मित सिंहासन,
हिमजलैः स्नानं – शीतल जल से स्नान,
च दिव्याम्बरं – तथा दिव्य वस्त्र,
नानारत्नविभूषितं – अनेक प्रकार के रत्नों से विभूषित,
मृगमदा मोदाङ्कितं चन्दनम् – कस्तूरि गन्ध समन्वित चन्दन,
जाती-चम्पक – जूही, चम्पा और
बिल्वपत्र-रचितं पुष्पं – बिल्वपत्रसे रचित पुष्पांजलि
च धूपं तथा दीपं – तथा धूप और दीप
देव दयानिधे पशुपते – हे देव, हे दयानिधे, हे पशुपते,
हृत्कल्पितं गृह्यताम् – यह सब मानसिक (मनके द्वारा) पूजोपहार ग्रहण कीजिये 

भावार्थ: –
       हे देव, हे दयानिधे, हे पशुपते,यह रत्ननिर्मित सिंहासन, शीतल जल से स्नान, नाना रत्न से विभूषित दिव्य वस्त्र,कस्तूरी आदि गन्ध से समन्वित चन्दन,जूही, चम्पा और बिल्व पत्र से रचित पुष्पांजलि तथा धूप और दीप यह सब मानसिक [पूजोपहार] ग्रहण कीजिये। 

शंकरजी के लिए नैवेद्य, जल, शरबत 

सौवर्णे नवरत्न-खण्ड-रचितेपात्रे घृतं पायसं,
भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं रम्भाफलं पानकम्।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरंकर्पूर-खण्डोज्ज्वलं,
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥ 

सौवर्णे नवरत्न-खण्ड-रचिते पात्रे – नवीन रत्नखण्डोंसे जडित सुवर्णपात्र में
घृतं पायसं – घृतयुक्त खीर, (घृत – घी)
भक्ष्यं पञ्च-विधं पयो-दधि-युतं – दूध और दधिसहित पांच प्रकार का व्यंजन,
रम्भाफलं पानकम् – कदलीफल, शरबत,
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूर-खण्डोज्ज्वलं – अनेकों शाक, कपूरसे सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल
ताम्बूलं – तथा ताम्बूल (पान)
मनसा मया विरचितं – ये सब मनके द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं
भक्त्या प्रभो स्वीकुरु – हे प्रभो, कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये 

भावार्थ: –
   मैंने नवीन रत्नखण्डों से जड़ित सुवर्ण पात्र में घृतयुक्त खीर, दूध और दधि सहित पांच प्रकार का व्यंजन,कदली फल, शरबत, अनेकों शाक,कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मीठा जल तथा ताम्बूल ये सब मन के द्वारा ही बनाकर प्रस्तुत किये हैं। हे प्रभो, कृपया इन्हें स्वीकार कीजिये। 

भोलेनाथ के स्तुति के लिए वाद्य 

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकंचादर्शकं निर्मलम्,
वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला गीतं च नृत्यं तथा।
साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधाह्येतत्समस्तं मया,
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं – छत्र, दो चँवर, पंखा,
चादर्शकं निर्मलम् – निर्मल दर्पण,
वीणा-भेरि-मृदङ्ग-काहलकला – वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभी के वाद्य,
गीतं च नृत्यं तथा – गान और नृत्य तथा
साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा – साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति
ह्येतत्समस्तं मया संकल्पेन – ये सब मैं संकल्प से ही
समर्पितं तव विभो – आपको समर्पण करता हूँ
पूजां गृहाण प्रभो – हे प्रभो, मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये 

भावार्थ: –
        छत्र, दो चँवर, पंखा, निर्मल दर्पण,वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभी के वाद्य,गान और नृत्य,साष्टांग प्रणाम, नानाविधि स्तुति– ये सब मैं संकल्प से ही आपको समर्पण करता हूँ।हे प्रभु, मेरी यह पूजा ग्रहण कीजिये। 

तन, मन, बुद्धि, कर्म, निद्रा – सब कुछ शिवजी के चरणों में 

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराःप्राणाः शरीरं गृहं,
पूजा ते विषयोपभोग-रचना निद्रा समाधि-स्थितिः।
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिःस्तोत्राणि सर्वा गिरो,
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥ 

आत्मा त्वं – मेरी आत्मा तुम हो,
गिरिजा मतिः – बुद्धि पार्वतीजी हैं,
सहचराः प्राणाः – प्राण आपके गण हैं,
शरीरं गृहं – शरीर आपका मन्दिर है
पूजा ते विषयोपभोग-रचना – सम्पूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा है,
निद्रा समाधि-स्थितिः – निद्रा समाधि है,
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः – मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है
स्तोत्राणि सर्वा गिरो – सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं
यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं – इस प्रकार मैं जो-जो कार्य करता हूँ,
शम्भो तवाराधनम् – हे शम्भो, वह सब आपकी आराधना ही है। 

भावार्थ: –
       हे शम्भो, मेरी आत्मा तुम हो,बुद्धि पार्वतीजी हैं,प्राण आपके गण हैं,शरीर आपका मन्दिर है,सम्पूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा है,निद्रा समाधि है,मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है तथा सम्पूर्ण शब्द आपके स्तोत्र हैं।
इस प्रकार मैं जो-जो कार्य करता हूँ, वह सब आपकी आराधना ही है। 

भगवान से अपने अपराध और गलतियों के लिए माफ़ी माँगना 

कर-चरण-कृतं वाक् कायजं कर्मजं वा,
श्रवण-नयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्-क्षमस्व,
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो॥ 

कर-चरण-कृतं वाक् – हाथों से, पैरों से, वाणी से,
कायजं कर्मजं वा – शरीर से, कर्म से,
श्रवण-नयनजं वा – कर्णों से, नेत्रों से अथवा
मानसं वापराधम् – मन से भी जो अपराध किये हों,
विहितमविहितं वा – वे विहित हों अथवा अविहित,
सर्वमेतत्-क्षमस्व – उन सबको हे शम्भो आप क्षमा कीजिये
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो – हे करुणा सागर, हे महादेव शम्भो, आपकी जय हो, जय हो 

भावार्थ: –
          हाथों से, पैरों से, वाणी से, शरीर से, कर्म से, कर्णों से, नेत्रों से अथवा मन से भी जो अपराध किये हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको हे करुणासागर महादेव शम्भो आप क्षमा कीजिये,हे महादेव शम्भो, आपकी जय हो, जय हो।

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