Wednesday, December 5, 2018

भगवद गीता का बायोटेक्नोलॉजी का वैज्ञानिक सिद्धान्त

भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में बताया था बॉयोटेक्नोलॉजी का वैज्ञानिक सिद्धांत

आज हम भले ही स्कूल कॉलेजों में जीवन की उत्पत्ति, अनुवांशिकी जैसे आधुनिक विज्ञान के सिद्धांतों की खोज के लिए जार्ज मेंडल, वाट्सन और क्रिक जैसे महान वैज्ञानिकों का नाम पढ़ते हैं, लेकिन यदि हम अपने धर्म ग्रंथों का गहन अध्धयन करें तो पाते हैं कि ये सिद्धांत तो करीब 5000 साल पहले भगवान श्रीकृष्ण ने प्रतिपादित कर दिए थे। श्रीमद्भागवत गीता में कई ऐसे गूढ़ श्लोक हैं जो आधुनिक विज्ञान के कई जटिल सिद्धांतों को खुद में समेटे हुए हैं। श्रीमद् भागवत गीता सिर्फ एक दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक ही नही बल्कि एक विज्ञान ग्रंथ भी है।
भगवान श्रीकृष्ण ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को ज्ञान दिया था। यह ज्ञान आज कई वैज्ञानिक अवधारणाओं का जनक है। श्रीमद् भागवत गीता के सात श्लोकों में जीवन की उत्पत्ति का पूरा सार है। इन श्लोकों की मीमांसा बताती है कि अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में ही भगवान श्रीकृष्ण ने मानव की उत्पत्ति का विज्ञान बता दिया था। सामवेद के तीसरे अध्याय के 10वें खंड में पहला व नौवां श्लोक पांच तत्वों की पुष्टि करता है। जीव आत्मा अणु और परमाणु से बनी है। नौवें श्लोक में ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण अणु और परमाणु के रूप में किया है।

ये हैं सात श्लोक

1- मय्यासक्तामना: पार्थ योग युजजन्मदाश्रय:।
असंशय समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु।।

इस श्लोक में शरीर की आंतरिक ऊर्जा के आधार के बारे में बताया गया है। जिसे वैज्ञानिक भाषा में माइटोकोंड्रिया कहते हैं। यही शरीर में ऊर्जा पैदा करने वाला एडीनोसिन ट्राई फॉस्फेट पैदा करता है।

2- ज्ञानं तेहं सविज्ञामिदं वक्ष्याम्यशेषत:।
यज्ञात्वा नेह भूयोन्यज ज्ञातव्यमविशष्यते।।

इस श्लोक में सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया को बताया गया है। पृथ्वी पर निर्जीव से जीव की उत्पत्ति के बारे में जानकारी दी और बताया कि वह कौन से कण थे, जिनसे शरीर का निर्माण हुआ।

3- मनुष्याणां सहस्त्रेषु कशिचद्यतति सद्धिये।
यततामिप सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्वत:।।

तीसरे श्लोक में तत्व ज्ञान को विस्तार से समझाया गया है। यह भी बताया गया है कि तत्व ज्ञान समझना ही दुष्कर है। इसे जिसने समझ लिया, उसे कुछ और जानने की जरूरत नहीं।

4- भूमिरापोनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च।
अहंकार इतीयं में भिन्ना प्रकृतिरष्टयां।।

5- अपरेयमितस्त्वन्यां प्रर्कृंत विद्वि में पराम।
जीवभूतां महाबाहों ययेदं धार्यते जगत्।।

चौथे और पांचवें श्लोक में कई ऐसी बातें कही हैं जिससे सिद्ध होता है कि लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने गुणसूत्र के बारे में भी जानकारी दी थी।

6- एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय।
अहं कृत्स्नस्य जगत: प्रभव: प्रलयस्तथा।

7- मत्त परतरं नान्यत् किचिदस्ति धनंजय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।

छठे और सातवें श्लोक में उत्पत्ति का आधार तत्वों को बताया। इस श्लोक में बताया है कि मृत्यु शरीर की होती है, शरीर के अंदर मौजूद तत्वों की नहीं, जिसे आत्मा कहते हैँ।

यही बात आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि डीएनए कभी नहीं बदलता है। चाहे किसी भी रूप में मृत्यु हो, जबकि यही बात गीता में श्रीकृष्ण ने बहुत पहले ही बता दी थी। 
डीएनए- वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार सूत्र का सूत्र में मणियों की तरह गुथा होना है।
श्रीकृष्ण के अनुसार सूत्र में सूत्र के मणियों के सदृश मुझमें गुथा हुआ है। यानी जीव में विद्यमान है।
यह श्लोक डीएनए को ही परिभाषित करता है। भगवान श्रीकृष्ण के इसी वाक्य को अगर हम बॉयोकेमेस्ट्री की किसी भी पुस्तक में देखते हैं, तो वहां इसे हैम "स्ट्रिंग्स ऑन द रॉल्स" नाम से अंग्रेजी में पढ़ते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने डीएनए की रासायनिक प्रकृति को कुछ इस तरह समझाया है। यहां मणि रूप का मतलब डीएनए जो कि केमिकल थ्रेड (धागों) से मिलकर बना है। यहां धागों का मतलब बॉडिंग से है कि किस तरह से निर्जीव पदार्थ आपस में जुड़कर जीवन का निर्माण करते है।
इसलिये ही सनातन धर्म ब्रह्माण्ड का सबसे प्राचीन, विकसित और वैज्ञानिक धर्म है।
।।जयति सनातन धर्म।।