Wednesday, December 30, 2020

"हनुमान जी की प्रतिज्ञा


´´र´´ कार का अनुसंधान करके तो देख। पूर्वकृत कर्मों का नाश न कर दूं तो कहना।।
राम नाम को अपने ध्यान में बसाकर तो देख। तुझे मूल्यावान न बना दूं तो कहना।।
´´ अ´´ कार का अनुसंधान करके तो देख। अन्त:करण का अन्धकार न मिटा दूं तो कहना।।
राम नाम का मनन करके तो देख। ज्ञान के मोती तूझ में न भर दूं तो कहना।।
´´म´´ कार का अनुुसंधान करके तो देख। अमृतानन्द की वर्षा न कर दूं तो कहना।।
राम नाम को सहारा बना कर देख। तुम्हें सबकी गुलामी से न छुड़ां दूं तो कहना।।
´´र´´ ´अ´ ´म´ को मिलाकर ´राम´ लिख। जीवन मरण से मुक्त न करा दूं तो कहना।।
रामनामानुराग में आँसू बहा कर तो देख। तेरे जीवन में आनन्द की नदियां न बहा दूं तो कहना।।
राम नाम लिखना तो सिखो। कहां से कहां न पंहुचा दूं तो कहना।।
राम नाम का प्रचारक बन के तो देख। तुझे किमती न बना दूं तो कहना।।
जप मार्ग पर पैर रख कर तो देख। तेरे लिये सब मार्ग न खोल दूं तो कहना।।
भक्तिमयी राहों पर चलकर तो देख। तुझे शान्ति दूत न बना दूं तो कहना।।
राम नाम के लिये खर्च करके तो देख। कुबेर के भण्डार न खोल दूं तो कहना।।
राम नाम पर खुद को न्यौछावर करके तो देख। पूरा संसार न्यौछावर न कर दूं तो कहना।।
राम नाम सुन के सुना के तो देख। कृपा और कृपा न बरसा दूं तो कहना।।
´´राम´´ नाम का लिखित जप करके तो देख। माया से मुक्त न करा दूं तो कहना।।
राम नाम की तरफ हाथ बढ़ाकर तो देख। दौड़ कर गले न लगा लू तो कहना।।
राम नाम का तू बन के तो देख। हर एक को तेरा न बना दूं तो कहना।।

Saturday, December 26, 2020

हिन्दुत्त्व का पतन का कारण

क्या हम हिन्दू ही हिंदुस्तान को इस्लामिक देश बनाना चाहते हैं? 

क्योंकि आजकल सोशल मीडिया पर बहुत से पोस्ट पढ़कर ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। 

मैं हिन्दू धर्म के अनुयायियों एवं धमर्गुरुओ और धर्म के तथाकथित ठेकेदारों से यह प्रश्न करना चाहता हूँ।

विश्व में ईसाइयो के 80 देश और मुस्लिमों के 56 देश हैं,लेकिन सबसे पुरानी सनातन सभ्यता वाले हिंदुओं का देश क्या सिर्फ एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बन कर नही रह गया है? 

क्या हिंदू अपने हित की बात कहे तो वो सांप्रदायिक और अगर कोई मुस्लिम तुष्टिकरण करे तो वो धर्मनिरपेक्ष हैं ?

क्या यह धर्मनिरपेक्षता का मात्र दिखावा ही नही है, कि एक खास धर्म का वोटबैंक हासिल करने के लिये देश की सबसे पुरानी पार्टी खुलेआम निकल पड़ी है, राजनीति के बाजार में, लेकिन हिंदू हितों की बात करने वाला कोई भी नहीं है हमारे देश में?

मेरा अपना मनना है अब भी जो हिंदू इस घमण्ड में जी रहे हैं कि प्राचीन काल से सनातन धर्म है, और इसे कोई मिटा नहीं सकता, तो इस गलतफहमी से जितना जल्दी हो सके निकल जायें, क्योंकि वोटबैंक के लिये सभी राजनीतिक दलों ने हिंदुओं का ही सदैव शोषण किया है, और अभी भी कर रहे हैं।

ऐसी परिस्थिति में क्या हम हिंदुओं को भी एक जुट होकर एक झंडे के नीचे आ जाना चाहिये?

हमें मिलकर इसी मुद्दे को राजनीतिक दलों के समक्ष में उठाना होगा कि भारत हिंदू राष्ट्र कब बनेगा? 

तभी राजनीतिक दलों को इस दिशा में सोचने पर मजबूर कर सकेंगे। 
हम हिंदुओं को भी जाति पाति का भेद मिटाकर एक हिन्दू वोट बैंक बनना होगा तभी हम अपनी मांग पूरी करवा सकेंगे। 
NOTA दबाकर या मोदी का विरोध करके तो कभी हिन्दू सशक्त हो सकते होते तो कब के हो गए होते। 

क्योंकि जैसी भी हो लेकिन वर्तमान परिदृश्य में भाजपा ही एक मात्र पार्टी है, जो हिंदुओं का अस्तित्व बचा पायेगी ऐसा दिखता है,और मोदी जी ही वो प्रधानमंत्री हैं जो हिंदू विरोधी ताकतों से निपट पाने में सक्षम प्रतीत होते हैं। 

यदि आपको मेरे बातों पर विश्वास नहीं होता कि हिंदु किस तरह पूरे संसार और देश में घट रहे हैं तो जरा इन आंकड़ों पर नज़र डालिये या इंटरनेट पर देख लीजिए।

पाकिस्तान-3 % हिंदू।
बांग्लादेश -8 % हिंदू।
अफगानिस्तान से हिंदु मिट गये।
काबुल जिसे श्रीराम के पुत्र कुश ने बसाया था वहां एक भी मंदिर नहीं, गांधार जहां की रानी गंधारी थीं, उसका नाम अब कंधार है और वहां एक भी हिंदू नहीं पाया जाता है।

कम्बोडिया जहां राजा सूर्यदेव बर्मन ने दुनिया का सबसे बड़ा अंकोरवाट मंदिर बनवाया वहां एक भी हिंदू का अवषेष भी नहीं बचा है।

बालीद्वीप में 20 - 25 साल पहले 90% हिंदू थे लेकिन आज सिर्फ 20 % बचे हैं।

कश्मीर घाटी में 20 साल पहले 50% हिंदू थे लेकिन आज नाम मात्र हिंदू वहां बचे हैं।

केरल में 10 साल पहले हिंदुओं की आबादी 60% थी लेकिन वहां अब मात्र 10 % हिंदू बचे हैं।

नॉर्थ इस्ट जैसे सिक्किम,नागालैंड,आसाम और पश्चिम बंगाल का हाल आपमें से किसी से छिपा नहीं है। 

यदि हम हिंदुओं को यदि अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी हिन्दू ही बने रहना देखना है, तो हम एकजुट होना ही होगा अन्यथा भविष्य में हिंदू शब्द मात्र पुस्तकों में ही पाए जा सकेंगे, कि हिन्दू नाम की प्रजाति भी कभी इस देश में थी।

यह मेरी अपनी विचारधारा है, यदि आप लोगों के मस्तिष्क में हिंदुओं की सुरक्षा और अखंडता का और भी कोई उत्तम विकल्प हो तो कृपया अपने विचारों को प्रस्तुत करने की कृपा करें। धन्यवाद।

Monday, December 21, 2020

आज का युवा और धर्म

धार्मिक स्थलों और सोशल साइटों पर युवा वर्ग की लगातार बढ़ती भीड़ एवं धर्मं एवं राष्ट्रीयता की भावनाओं का आदान-प्रदान इस बात का प्रतक्ष्य प्रमाण है कि उनमें धर्मं एवं राष्ट्र के प्रति आस्था बढ़ रही है, लेकिन वे पाखण्ड के या झूठे वादों के झांसे में नहीं आना चाहते हैं और यह देखकर बहुत अच्छा लगता है की आज का युवा राष्ट्र एवं धर्मं के प्रति अपने नैतिक कर्तव्व्यों को समझने की शुरुआत कर चुका है बस आवश्यकता है की इसे अनवरत जारी रक्खे। आज का युवा यह चाहता है की आप उन्हें जींस छोड़कर धोती पहनने को मत कहिए और यह सही भी है , मैं स्वयं भी किसी को धोती या टोपी नहीं पहनाना चाहता हूँ और नहीं मै किसी को मंदिर जाके या घर में बैठ पूजा-अर्चना या जप-तप करने को कह रहा हूँ।
हाँ बस अपने राष्ट्र के युवा वर्ग को अपने इस लेख के माध्यम से सिर्फ इतना सन्देश प्रेषित करना चाहता हूँ की धर्मो की उत्पत्ति के पूर्व हमारे पूर्वजो ने जीवन की अत्यंत गहराईयों में जाकर कुछ नियम बनाये थे,जो की एक नित्यकर्म हुआ करता था और यही नित्यकर्म आगे चल कर धर्म बन गया।और इसी धर्म को हमारे तक पहुँचते पहुँचते बहुत सारे टुकडो में बाँट दिया गया,जिससे मूलभूत धर्मं और उसके आदर्शों का स्वरुप ही बदल गया. 
धर्म में आसक्ति/आस्था/विश्वास तो आज के आधुनिक दिखावे वाले युवा वर्ग को भी है। सब अकले-अकले भगवान का नाम जपते हैं ,सब एक दूसरे को यह दिखाते हैं कि "मुझे इस सब में कोई दिल्चस्पी नहीं है"। अब यदि मैं अपनी बात कहूं तो मुझे व्यक्तिगत रूप से धर्म में काफ़ी आस्था है। क्योंकि मेरा मानना है की धर्म, केवल धर्म नहीं, अपितु एक जीवन पद्धति है। यूं देखा जाय तो सृष्टि के हर तत्व का एक धर्म होता है। जैसे आग का धर्म है जलना, उसी प्रकार मनुष्य का धर्म है मानवता । 
मनुष्य को ईश्वर ने इतना बुद्धिमान तो बनाया है कि उसे बिना तर्क के किसी बात को नहीं मानना चाहिए। किन्तु फिर भी बहुत से व्यक्ति आसानी से गलत बातों को स्वीकार लेते हैं ।और कुछ मनुष्यों को आप कितना ही तर्क दे लें वो फिर भी अपनी बात मनवाने के लिए कुतर्कों का सहारा लेकर हमेशा व्याकुल रहते है। वास्तव में मानव बुद्धि बड़ी ही जटिल है, और वो वही मानना चाहती है, जैसे उसको संस्कार मिले हैं। यधपि वह चाहे सही हो या गलत, और कुछ बुद्धिमान लोग ही उन गलत संस्कारों को ज्ञान से नापते-तौलते हैं। अन्यथा बाकी मनुष्य तो सब भेड़-बकरियों कि तरह ही व्यवहार करते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति को ऐसे लोगों के छल भरे कुतर्कों को समझना चाहिए। धर्मं मनुष्य को मनुष्यत्व के मूल भूत सिद्धांत जैसे की ब्रहमचर्य, ईश्वर ध्यान, समाधी, सज्जनों से प्यार, न्याय, दुष्टों को दंड, सभी जीवधारियों पर दया भाव आदि अनेक जीवन के सिद्धांतों के साथ-साथ, विज्ञान, गणित और जगत रहस्यों को समझाता या सिखाता है।परंतु मुझे तब बहुत दुख: होता है, जब धर्म के नाम पर ऊंच-नीच, छूत-अछूत, और पाखंड जैसी कुरीतियों से सामना होता है।