Vinod Tiwari
Saturday, November 17, 2012
मंत्र
किसी शब्द की अनुप्रस्थ तरंगों के साथ जब लय बध्यता हो जाती है तब वह प्रभावशाली होने लगता है, यही मंत्र का सिद्धान्त है और यही मंत्र का रहस्य है, इसलिए कोई भी मंत्र जाप निरंतर एक लय, नाद आवृत्ति विशेष में किए जाने पर ही कार्य करता है.. मंत्र जाप में विशेष रुप से इसीलिए शुद्ध उच्चारण, लय तथा आवृत्ति का अनुसरण करना अनिवार्य है, तब ही मंत्र प्रभावी सिद्ध हो सकेगा क्योंकि गति सर्वत्र है, चाहे वस्तु स्थिर हो या गतिमान, गति होगी तो ध्वनि निकलेगी, ध्वनि होगी तो शब्द निकलेगा... सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से नौ रश्मियां निकलती हैं और ये चारों और से अलग-अलग निकलती है, इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गई, इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने, इस तरह सूर्य की जब नौ रश्मियां पृथ्वी पर आती है तो उनका पृथ्वी के आठ बसुओं से टक्कर होती है और सूर्य की नौ रश्मियां और पृथ्वी के आठ बसुओं की आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुई वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गई, इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल १०८ (७२+३६) ध्वनियां पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित है.. . ब्रह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है, और मंत्र की इन ध्वनियों को तो नासा ने भी माना है, इसलिए यह बात प्रमाणिक साबित होती है कि वैदिक काल में ब्रह्मांड में होने वाली ध्वनियों का ज्ञान हमारे प्राचीन ऋषियों को था तथा वे इसका व्योहरिक जीवन में उपयोग भी करते थे , आज भी कुछ मंत्रवेत्ता हमारे देश भारतवर्ष में और नेपाल तथा तिब्बत के क्षेत्रों में पाए जाते है , मंत्र विज्ञानं कोई अन्धविश्वास नहीं बल्कि सनातन विज्ञानं का एक महत्त्वपूर्ण विभाग है, परन्तु अत्यंत दुखः और शर्म की बात है की मंत्र विज्ञानं की जननी भारत वर्षा की इस पावन धरा पर आज कुछ लोगों ने मंत्रो के नाम पर ठगी का पूरा व्यवसाय स्थापित कर लिया है तथा पवित्र और उपयोगी मंत्र विज्ञानं को अन्धविश्वास के नाम पर हेय दृष्टि की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है , क्या यह विज्ञानं पुनः भारतवर्ष में स्थापित होकर मानव कल्याण हेतु प्रयुक्त हो सकेगा , आज यह एक ज्वलंत प्रश्न बनकर सनातन सम्प्रदाय के सन्मुख खड़ा है , और इसका उत्तर देने वाला कोई नहीं है..
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