Friday, July 22, 2011

हिन्दू औरतों के मांग में सिन्दूर लगाने का वैज्ञानिक आधार

हिन्दू औरतों के मांग में सिंदूर लगाने का वैज्ञानिक आधार यह है की ... ............

सुषमणा नाड़ी ह्रदय से सीधी मस्तक के सामने से होती हुयी ब्रह्म-रंध्र में पहुंचती है .... ब्रह्म-रंध्र और अधिप नामक मर्म के ठीक ऊपर भाग पर सिन्दूर लगाया जाता है ... मांग को सिर के बीचों-बीच निकालने का चलन इसीलिए बनाया गया है .... सिन्दूर में पारा धातु पर्याप्त मात्रा में रहता है ... मर्म स्थान में रोम छिद्रों द्वारा पारे का कुछ अंश सुषमणा नाड़ी की सतह तक पहुंचता रहता है ... जनेन्द्रियों को क्षति पहुंचाने वाले कीटाणु जब मर्म स्थान से सुषमणा नाड़ी में रक्त के साथ प्रवाहित होते हैं, तब पारा उन्हें नष्ट कर देता है ...परिणाम स्वरुप बुद्धिमान एवं स्वस्थ बच्चे का जन्म होता है ............

बच्चों की देखभाल, अन्य घरेलू कार्य तथा बालों को सुखाने में समय लगने के कारण स्त्रियों को नित्य सिर धो पाना संभव नहीं हो पाता है, जिसके कारण सिर में जूं

एवं डंड्रफ पड़ जाती हैं ..... मांग में सिन्दूर रहने पर जूं इत्यादि का खतरा नहीं रहता ,चूंकि पारा जूं की अचूक औषधि है .. सिन्दूर से सौंदर्य बढ़ जाता है .... परन्तु

उपरोक्त गुणों के अतिरिक्त सिन्दूर में एक गुण यह भी है, कि यह महिलाओं में उत्तेजना पैदा करता है .. इसीलिये कुँवारी कन्याओं एवं विधवाओं को सिन्दूर लगाना

वर्जित है !

विशेषज्ञों के अनुसार विशिष्टियों (मानक) के अनुसार सिन्दूर बनाने का कोई भी कारखाना भारत में नहीं है, जो कि खेद का विषय है ... आजकल बाजार में

सामान्यतः जो सिन्दूर बिकता है वह सेलखड़ी, खडिया पीस कर या आरारोट में विभिन्न रंग मिलाकर उसमें कुछ मात्र में लेडआक्साईड मिलाकर बनाया जा रहा है ....

लेडआक्साईड त्वचा के लिए अत्यंत हानिकारक है ..... कैंसर जैसे रोग होने की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है ....... शासन एवं समाजसेवी संस्थाओं

को इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है .....