Monday, November 2, 2015

स्वयं से युद्ध

आदरणीय मित्रों आज मुझसे मिलने एक मित्र आये थे, तो देर तक तक तो औपचारिक बातें हुयी उसके बाद वो कुछ धर्म सम्बंधित बातें किये और फिर चले गए . अब मित्र तो चले गए मेरे जैसे मंद बुद्धि आदमी के दिमाग में अचानक एक बड़ा ही इंकलाबी ख्याल छोड़ गए . अब मैं तो हूँ मंद बुद्धि का आदमी तो उटपटांग चीजें ही सोचूंगा . मैंने सोचा की क्यों न अपने देश के सभी सम्प्रदायों के सभी धर्म गुरुओं को इकठ्ठा किया जाए और इनके विरोधाभाषों पर इनके बीच परस्पर वार्तालाप आयोजन करवा दिया जाए जिससे यह पता चल सके की आखिर में यह सब एक दूसरे के विरोभाषी क्यूँ हैं? लेकिन तुरंत ही हमारे छोटे से दिमाग में एक बहुत विशालकाय विचार आगया और कोलाहल मचने लगा की मुझे बाहर निकलने दो , अब मैं क्या करता बेचारा, छोटा सा दिमाग और हजारों टन वजन वाला विचार आखिर कब तक रोक कर रख पता और आखिर कर आप लोगों के सामने अपने हजारों टन वजन वाला विचार पटकना ही उचित समझा, बहुत राज की बात है आप लोग मित्र है इसलिए बता रहा हूँ लेकिन आप लोग भी सिर्फ अपने मित्रों,ग्रुप्स, पेजों तक ही सीमित रखना और उन्हें भी सख्त हिदायत दे देना की वो भी सिर्फ अपने मित्रों, ग्रुप्स, पेजों , सोशल नेटवर्क ,ब्लॉग , मीडिया, या अधिकतम सरकारी संस्थाओं तक ही पहुचाएं बाकी सबसे बात को गुप्त ही रक्खें, आशा करता हूँ आप लोग मेरी बात को ध्यान में रखते हुए सिर्फ इन्ही लोगों तक सीमित रखेंगे. अब ध्यान दीजिये वह विशालकाय और मेरे जैसे दुर्बल मानसिकता वाले व्यक्ति को डराने वाली बहुत ही भयंकर बात यह थी की आखिर यह सब लोग हमारे कहने से आएंगे क्यों ? और अगर मान लिया जाए की किसी तरह यह सब लोग आने को तैयार भी हो जाएँ तो सभी एक ही दिन आने को तैयार होंगे या नहीं? क्योंकि यह लोग इंतने व्यस्त व्यक्ति हैं की इन्हे स्वयं प्रवचनों और टी वी चैनलों से इतना भी टाइम नहीं मिल पता है की यह स्वयं त्रिकाल संध्या , ध्यान , योग , पूजा - पाठ , जैसे छोटे छोटे नित्यकर्मों को करने की भी फुर्सत नहीं मिल पाती है, इसलिए यह लोग सब लाइव टेलीकास्ट के दौरान ही जनता को करवाने में ही खुद को किया हुआ समझ लेते हैं.फिर भी मैंने किसी तरह अपनी मंद बुद्धि समझाया की नहीं ऐसा नहीं है,आखिर यह लोग धर्म गुरु हैं , इन्होने भगवांन से मिलाने का टेंडर लिया हुआ है इसलिए आने में शायद अभी जाएँ, आएंगे कैसे नहीं,इतनी बड़ी बड़ी भविष्य सुधारने की तरकीबें बताते रहते हैं , टेलीविसिओं पर बाकायदा विदेशों में निर्मित यन्त्र वगैरह बेचते रहते हैं , चमत्कार की गारंटी लेते हैं तब भी मेरा मूढ़ मगज मानने को तैयार नहीं हुआ और उसने तुरंत दूसरा सवाल ठोक ही दिया जो तुम सोच रहे हो इसके लिए कोई भी धर्म गुरु तैयार बिलकुल भी नहीं होंगे, क्योंकि अगर ये सभी एक जगह कभी दुर्घटनावश इकठ्ठे होने को तैयार भी हो गए तो तू इनके आने - जाने के लिए बड़ी बड़ी वातानुकूलित गाड़ियां और स्वागत करने के लिए बड़े बड़े राजनेता , अभिनेता और अभिनेत्रियों को कैसे लाएगा? अब यह तो बहुत बड़ी समस्या रख दी उसने सामने क्योंकि सभी बाबा लोगों के शिष्य मंडली में जरूर कोई फिल्म अभिनेता, राजनेता या खिलाडी जरूर सम्मलित होता है, और अगर तू इसका भी जुगाड़ कर लेगा यह मान भी लिया जाए तो तू इनकी सुरक्षा व्यस्था देखने के लिए सुरक्षा कर्मी कहाँ से लाएगा, अब इस बार तो मैंने भी टपाक से जबाब दिया की अरे मंद बुद्धि सन्यासियों को इन सब सब चीजों से क्या लेना देना तो? इस बार तो मूढ़ मगज और भड़क गया और कहने लगा और तुरंत बोला की तुझे याद नही क्या अभी कुछ समय पहले ही बाबा आशाराम, उनके कुपुत्र नारायण साईं और बाबा रामपाल, राधे माँ जो स्वयं साक्षात देवी कहलवाती थी,और निर्मल बाबा जो की स्वयं को त्रिनेत्र कहते थेय और और किसी को गोल गप्पे तो किसी को पकोड़े खिलाकर ही समाधान कर देते हैं ऐसे बाबा भी जो स्वयं को मैसेंजर ऑफ़ गॉड कहते है फिल्मों में एक्शन , स्टंट इत्यादि दिखाते है , कभी कोई इमाम खुछ भी फ़तवा जारी कर देते हैं , ओवैशी , पॉल धिनाकरण जैसे लोग तो ईश्वर से प्रतिदिन बात चीत भी करते रहते हैं, और स्वामी सदानंद जी "परमहंस" और कल्कि अवतारी तक घोषित कर रक्खे हैं स्वयं को तो क्या तुझे इन जैसों के क्रिया-कलापों की तुझे बिलकुल भी खबर नहीं है, और फिर उसने मुझ पर टनो एहसान लादते हुए कहा की चल अगर किसी तरह यह भी संभव हो जाए और सभी आ भी जाएँ तो वहां सबसे ऊपर मंच पर कौन बैठेगा, उन सबका सबका नेतृत्त्व कौन करेगा इसी पर सब आपस में ही लड़ मरेंगे और तुझे जाना पड़ेगा जेल .. और अगर फिर बुरा सा मुंह बनाते हुए एक और बिस्फोटक प्रश्न मेरी तरफ उछाल दिया और कहा अगर मैं यह भी मान लूँ की उन सबमें अगर इस पर भी किसी तरह सहमति बन भी गयी तो भी नया बवाल खड़ा कर देंगे और कहने लगेंगे अपने उच्च विचार सबसे पहले मैं रखूँगा क्योंकि मुझे इन सबसे अधिक ज्ञान है और मेरे नाम के साथ कुछ आधे दर्जन से ज्यादा उपाधियाँ लगी हुयी हैं , तब मैंने कहा की इस बात पर भी अगर सहमति हो भी जाये तो बता अब तू क्या फच्चर फसायेगा तो उसने कहा अगर तेरी बात मानते हुए मैं तुझ पर यह एहसान का टोकरा पटक भी दूँ तो तू यह बता उनकी बातें दूसरे धर्म गुरु कयं सुनेंगे ,और अगर चलो उन्होंने एक दूसरे की बातें किसी तरह झेल भी ली तब भी सहमति बन पाने में फच्चर जरूर फसायेंगे और कहेंगे की मैं इन सबकी बात क्यों मानूं ,मेरा अपना ज्ञान ही उनके ज्ञान से बहुत ऊंचा है,मेरी उपाधि भी उनसे बड़ी है , मेरा मठ भी उनसे बड़ा है, मेरे पास उनसे ज्यादा चेले भी हैं .इत्यादि .अहंकार में लड़ मरेंगे और इनकी लड़ाई में बेवजह मारा जायेगा तू , तो फिर मैं सोचने लगा तो उसने कहा जो तेरे पास है नहीं उसपर जोर क्यों डालता है , मैंने उससे निवेदन किया की भाई मुझे भी अपने ख्याली पुलाव तो पकाने दे. अब इस बार तो उसने लाल - पीला होता हुए हद ही कर दी और कहने लगा की नहीं मानता है ले मेरे शब्द रुपी कुछ बाण झेल, सावधान हो जा, अब भैया मेरी क्या मजाल जो उसको रोक सकूँ. उसने कहा की अगर यथार्थ में देखा जाए तो 90% ऐसे धर्मगुरु हैं जो बेवकूफ भक्तों को नित्यकर्म ,पूजा, पाठ,जप ,ध्यान इत्यादि करने की सलाह देते हैं और साथ में एक माला और एक नाम पकड़ा देते हैं ,और एक वाद से बाँध देते हैं. क्योंकि वो स्वयं कभी नित्यकर्म ,पूजा पाठ ,ध्यान इत्यादि करते ही नहीं है,क्योंकि वो तो स्वयं धर्म गुरु हैं उनके मुंह से निकली हुयी हर बात आकाशवाणी होती है, सिर्फ रटे हुए ग्रंथों के ज्ञान कुछ इस तरह बताएँगे जो उनके अनुयायियों को बिलकुल भी समझ में न आये, और अनुयायी भी खुश हो जाते है गुरूजी तो बहुत पहुंचे हुए हैं, उनकी गूढ़ ज्ञान से भरी हुयी बातें हम जैसे तुच्छ प्राणियों के समझ में कैसे आएगी, चलो अब हम नियमित गुरूजी की पूजा करते रहेंगे , आश्रम में चंदा देते रहेंगे, गुरूजी तो त्रिकाल दर्शी हैं कभी न कभी तो उनकी अनुकम्पा हो ही जायेगी.फिर उसने मुझसे पूछा की तू बता जब इनके पास खुद स्वयं की अनुभूति ही नहीं है ,टोटल पुराना कचरा भरा हुआ है और वही यह अंध भक्तो के दिमाग में ठूस ठूस कर भरते रहते हैं, और वो इन में ही खुश रहते हैं,इनके पास अपना नया कुछ है ही नहीं तो यह किसी को देंगे क्या ,यह जन मानस को राम कृष्णा ,बुद्ध ,महावीर जैसे महान पुरुषों के द्वारा किये कार्यों का अनुशरण करने को नहीं कहेंगे , बल्कि ये सिर्फ यह सिखाएंगे की इनकी पूजा करो ......
शिर्डी के साईं , पुट्टपर्ती के साईं ऐसे बहुत से हैं जिनकी तो बाकायदा चालीसा और आरतियाँ बिकती हैं बाजार में , एक धर्मगुरु हैं बाराबंकी में संत ज्ञानेश्वर जी (प्रभु सदानंद जी परमहंस ) हैं इन्होने तो स्वयं को कल्कि अवतार घोषित कर दिया है , ऐसे कितने भरे पड़े हैं , आशाराम, रामपाल, निर्मलबाबा, पॉल धिनाकरण ऐसे कितने ही धर्म गुरु कितने जगह जगह पर कब्ज़ा जमाये बैठे हैं, और इसके बाद तो उसने हद ही कर दी कर दी और कह की ---- 
बर्बाद गुलिश्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था ,
हर साख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिश्तां क्या होगा ..
अब तो भाई मेरा चेहरा ही पीला पड़ गया और अत्यधिक भयभीत हो गया अपने देश के धर्मगुरुओं की प्रशंशा सुनकर, तब उसने मुझसे एक बात बताई जो की अत्यंत गूढ़ और गुप्त बात है लेकिन यह उसने मुझे बताने से रोका नहीं था इसलिए मैं उन शब्दों की उलटी भी यहीं पर कर देता हूँ, क्योंकि गले में फसी हुयी है, रोक पाना मुश्किल है . उसने यह कहा था की अगर अपने देश के सभी बाबाओं के मठों में एकत्रित धन को देश के विकास में लगा दिया जाए तो मैं गॉरंटी लेकर कह सकता हूँ की हमारे देश को किसी विदेशी कर्ज की जरुरत ही नहीं पड़ेगी और आराम से बैठकर खाने वाले इनके निठल्ले चेलों को काम पर लगाकर देश की मजदूर शक्ति को भी काफी मजबूत बनाया जा सकता है और राष्ट्र और समाज से गरीबी,अशिक्षा,भष्टाचार, अन्धविश्वास जैसी बहुत सी भयंकर एवं असाध्य होती जारही बीमारियों को काफी हद तक दूर की जा सकती है और सभी बुजुर्ग धर्म गुरुओं को प्राचीन परंपरा के अनुसार जंगलों , पहाड़ियों और अत्यंत पिछड़े वर्ग , जैसे आदिवासियों की वस्तियों के आसपास इनके पुनर्नवास के लिए लिए एक झोपडी बनाकर दे दी जाए जहां यह आदिवासियों को शिक्षा और संस्कार दें और उन्ही लोगों से भिक्षा ग्रहण करके भोजन करें और स्वच्छ वातावरण में शुद्ध और सात्विक परिवेश में इश्वर भक्ति में लींन रहें, और वास्वत में संतों को करना तो यही चाहिए ..तब फिर उसने कहा की अगर तू ऐसा करने के लिए सभी धर्म गुरुओं को मन सकता है तो मजे से सभी सम्प्रदायों के सभी धर्म गुरुओं को इकठ्ठा कर और इनके विरोधाभाषों पर इनके बीच परस्पर वार्तालाप का आयोजन करवा , मैंने कहा ठीक है भाई, तुमने मुझे समझाया है की डराया है, तो उसने भी धर्म गुरुओं जैसे एक बात बोल दी की यह सब गूढ़ ज्ञान की बाते है , साधारण लोगों की समझ में नहीं आती हैं. ...अतः मैं आप सभी धर्म गुरुओं और फेसबुक पर उपस्थित सभी धर्म और राष्ट्र पर बड़ी बड़ी डींगे हाँकने वाले लोगों से कर-वद्ध निवेदन करता हूँ आप सभी लोग अहमदाबाद के अपना अपना टिकट आरक्षित करवा लें और यहां पर आप सभी को बैठने और खाने पीने और रहने के बड़े से वातानुकूलित शिविर तैयार करवाने के लिए अधिक से अधिक धनराशि समस्त धर्म गुरुओं के सम्मलेन हेतु भेज दें और सभी लोग यथा शीघ्र आयोजन स्थल पर आने का कष्ट करें , आप लोग उपरोक्त सहायता उपलभ्ध करवाएं और सनस्त धर्म गुरुओं का आशीर्वाद ग्रहण करें .. और सभी धर्म गुरुओं से शiक्षiत दंडवत करते हुए विनम्र निवेदन है की अगर आप लोगों को मेरी मंद बुद्धि द्वारा दी गयी सलाह पर सहमत है तो यथा शीघ्र इस शुभ कार्य के लिए समय निकालें और मुझे इस पोस्ट पर कमेंट करते हुए अपनी उपाधि, नाम,तथा संप्रदाय एवं अधिकतम जनहित में कितना धनराशि इस आयोजन के लिए प्रदान कर रहे हैं , यथा शीघ्र लिखें अन्यथा बिलम्व होने पर कहीं मेरी मूढ़ एवं मंद बुद्धि उलटी गुलाटी न खा जाए, बहुत म्हणत और अनुयय विनय करके इसकी मैंने उसकी रजामंदी ली है , यह तो आप लोग यह लेख पढ़ते हुए समझ ही गए होंगे की मैं किस हालत में हूँ.अंत में सभी को प्रणाम...और मेरी मंदबुद्धि से जो भी धृष्टता हुयी हो उसके लिए भी क्षमा प्रार्थी हूँ....