Saturday, September 12, 2015

वास्तविक उन्नति

क्या हम वास्तव में उन्नति एवं विकास कर रहे है,इस बारे में थोडा भ्रम है , इसे समझना जरुरी है, हम भले ही अंतिरक्ष में पहुच गए हो, भले हमारे कदम चंद्रमा पर हो लेकिन हमारे कदमो तले की ज़मीन खिसक रही है और इसका हमें पता भी नहीं चल रहा है. 
 एक तरफ तो हम विकास कर रहे है लेकिन दूसरी तरफ दुगनी तेजी से हमारा ह्रास हो रहा है. क्या ये विकास है? हमारी सभ्यता और संस्कृति जो हमारा अभिमान और बल था, उसे हम भूलते जा रहे है. क्या यह हमारा नैतिक पतन नही है? 

अब हम डॉक्टर, इंजिनियर, शिक्षक इसलिए नही बनना चाहते की हम देश एवं राष्ट्र की सेवा करना चाहते है, हम अपने राष्ट्र को मजबूत शिक्षित और स्वस्थ समाज देना चाहते है बल्कि उसमे हमें अच्छा पैकेज नज़र आता है. क्योकि इसमें हमारी कमाई अच्छी होती है इसलिए हम इससे जुड़ना चाहते है.

अब बाप अंपनी बेटी की शादी अच्छे लड़के से नही बल्कि अच्छी कमाई वाले लड़के से करते है. भले ही लड़का शराबी हो, जुआरी हो या फिर उसका आचरण ठीक ना हो. इससे उनको कोई फर्क नही पड़ता ,भले उनकी बेटी को बाद में दुःख दे इन से भी उनको फर्क नही परता क्योकि उनके लिए पैसा सब कुछ है आचरण या उनकी बेटी की खुशी कुछ भी नही ये हमारी उन्नति है हम अपने इतिहास, अपने बुजुर्गो के बारे में नही जानते, उनकी इज्जत नही करते, क्या ये हमारी उन्नति है?

हमारी शिक्षा विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती थी. लेकिन जिस तरह से हमारी शिक्षा के स्तर में गिरावट आयी है. क्या ये हमारी उन्नति है?
 पहले भारत एक राष्ट्र था लेकिन अब ये बहुत सारे खंडों का समूह है पहले हम हिन्दुस्तानी हुआ करते थे अब हिंदू , जैन , बौद्ध , सिक्ख आदि हो गए है और अब हमने और उन्नति करली..
हम युवा -बुजुर्ग, दलित – महादलित हो गये आशा है की अब आगे और भी उन्नति करेंगे हमारी सबसे बड़ी कमी यह है की हम विकास को ईट, पत्थर एवं आंकड़ों से तौलते है जो की हमारे लिए बहुत ही घातक है जिस तरह से हमारा नैतिक पतन हो रहा है ये देश और समाज के लिए बहुत ही गंभीर है..

हमारी जितनी भी समस्या है सब का कारण हमारा चारित्रिक और नैतिक पतन है. हमें विकास और वास्तविक विकास में फर्क पता होना चाहिए. वास्तविक उन्नति ये नही है की हम अपना नैतिक पतन करले. और सिर्फ पैसे कमा लें और अपनी हित के बारे में सोचे बल्कि हम अपने आने वाले भविष्य  के लिए किस तरह का समाज दे कर जा रहे हैं यह तो सोचें .

 हम सही मायने में विकसित तभी हो सकते हैं जब हम स्वयं यह सुनिश्चित करलेंगे की हमारे लिए राष्ट्रहित और समाज-हित ही सर्वोपरि है....