Friday, June 11, 2021

गुरु?

गुरु किसी शरीर का नाम नही और न ही किसी अस्थि, मांस से निर्मित व्यक्ति को ही कहते हैं। गुरु तो वह तत्त्व है जिसके शरीर में ज्ञान की वह चेतना स्थिति है , जो ब्रह्म ज्ञान में लीन है।
चेतन गुरु तो वही होता है, जो देह से परे हैं और सबमें समाये हुए एक पवित्र आत्मिक लौ की तरह सदैव प्रज्ज्वलित हैं। मेरे मतानुसार जीवन्त गुरु की यही व्याख्या है, और सिर्फ ऐसा व्यक्तित्त्व ही गुरु होने के योग्य होता है। लोग अपने मत, पंथ अनुसार गुरु दीक्षा ग्रहण करते है, और करना भी चाहिये।

लेकिन दीक्षा ग्रहण करने पहले यह अवश्य जान लें कि दीक्षा है क्या? 
शिष्य के पूर्ण आत्मसमर्पण और गुरु के पूर्ण आत्मदान रूपी पवित्र संगम को दीक्षा कहते हैं।
साधना जहां जीवन की एक मन्द प्रक्रिया है, वहीं गुरु दीक्षा तत्काल साधक के आध्यात्मिक जीवन में ज्ञान- विज्ञान के परमाणु परिवर्तित कर देने की क्रिया है। 
जिसने अपने आप को सद्गुरु को अपने समाहित कर लिया वही शिष्य एकाकार होकर देवत्त्व प्राप्त कर सकता है।
।।ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।।

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