Thursday, May 15, 2025

जेहादियों से भारत की प्रताड़ना और हिन्दुओं की निर्वीर्यता तथा पराभव का मौलिक कारण

जेहादियों से भारत की प्रताड़ना और हिन्दुओं की निर्वीर्यता तथा पराभव का मौलिक कारण है वर्णसंकर प्रजनन जो प्रतिलोम मिलन/ विवाह (hypogamy of females) से होता है। ऐसी संतति की कोशिकीय जैविक संरचना ही ध्वंसमुखी रहती है मातृ संस्कृति के प्रति। कितनी भी मेधावी या तेजस्वी क्यों न हो इसका लक्ष्य रहता है जीवन का ध्वंस, भले वह आत्मघाती क्यों न हो। अन्य शब्दों में, मृत्यु से अतिशय लगाव इनका inborn instinctive temperament रहता है।

इसीलिए अनादि काल से हमारी सभ्यता में प्रतिलोम प्रजनन निषिद्ध है। यही नहीं, ध्यान से देखेंगे तो विश्व की लगभग सभी सभ्यताओं में प्रतिलोम प्रजनन से बचने का प्रयास देखा जा सकता है। क्योंकि ऐसी संतति को दुनिया की कोई ताकत सुधार नहीं सकती, न शिक्षा न कोई लालच। इनको भारतीय समाज में रिहायशी क्षेत्रों में प्रवेश की भी अनुमति नहीं थी।

केवल एक वर्णसंकर (प्रतिलोम विवाह) व्यक्ति ही समाज को नष्ट करने के लिए काफी है, यहाँ तो करोड़ों हो गए हैं।

यत्र त्वेते परिध्वंसाज्जायन्ते वर्णदूषकाः।
राष्ट्रिकैः सह तद्राष्ट्रं क्षिप्रमेव विनश्यति॥10.61- -- मनुस्मृति
[जहाँ पर, जिस देश में, ये वर्ण को दु:खित करने वाले, वर्णसंकर (प्रतिलोम विवाह से) उत्पन्न होते हैं, वह देश प्रजा के साथ शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।]

महाभारत के अनुशासन पर्व के दानधर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 48 में---
"वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! युधिष्ठिर ने कहा- पितामह! धन पाकर या धन के लोभ में आकर अथवा कामना के वशीभूत होकर जब उच्‍च वर्ण की स्‍त्री नीच वर्ण के पुरुष के साथ सम्‍बन्‍ध स्‍थापित कर लेती है तब वर्णसंकर संतान उत्‍पन्‍न होती है।"

'Hypogamous union does bring in dissolution in the brain-factor of the male and female, moreover,
it distorts and blunts their nervous system, and sometimes makes them repugnant to ancestral lineage and culture,
demoniacally unbalanced, stubbornly inclined to anti-becoming and sentimental or peevish.'

ध्यान रहे, इस्लामिक आक्रांताओं ने शुरू से ही हिंदू नारियों में अपने बीज बोने शुरू किए। प्रतिलोम संतति का सबसे बड़ा स्रोत यही रहा है। आधुनिक समय में हिन्दुओं में भी प्रतिलोम अत्यधिक व्यापक हो गया है।

वर्णसंकरता यानि प्रतिलोम (Hypogamy of females) केवल मनुष्य के प्रजनन में ही नहीं, पशुओं के प्रजनन और कृषि, बागवानी में भी समान रूप से खतरनाक है। क्योंकि यह प्रकृति के जीवनीय प्रवाह का ही बलात्कार है।

' Graft not females of cultured species of distinguished characteristics on inferior or wild varieties,
-lo ! hell is winking.'

'Inferior sperm pricks destroy the nodules of superior ova.'

इसके विपरीत, अनुलोम असवर्ण प्रजनन यानि hypergamy of females को वर्णसंकर नहीं कहा जाता और ऐसा प्रजनन परम उत्कर्षदायी है। यह भारत सभ्यता का महत्वपूर्ण अंग था जिससे पूर्ण सामाजिक संहति और एकता बनी रहती थी। और हम इसी का उपयोग कर बाहर से आने वाले समुदायों को आत्मसात् कर लेते थे। जब से अनुलोम असवर्ण कम गया भारत निर्वीय होने लगा क्योंकि अनुलोम विवाह से ही hybrid vigour वाली संतति जन्म लेती है। इस संतति का स्वाभाविक जैविक टेंपरामेंट होना है अन्याय, अधर्म और अनीति का प्रचण्ड प्रतिकार। ऐसी संतति किसी लोभ, मोह या स्वार्थ से अपनी संस्कृति, अपने धर्म, सभ्यता का त्याग नहीं कर सकती चाहे प्राण भी क्यों न चले जायें। अनुलोम विवाह नहीं करने से समाज श्लथ, dull हो जाता है। मेरुदण्ड-विहीन हो जाता है। यही हुआ है भारत के समाज का। एकता, संहति और पराक्रम तीनो में पतन हुआ जिस कारण बाहरी हमलावरों से हम देश की रक्षा नही कर पाए।
.... मुसलमानों के पहले भी विदेशी आते थे, आक्रमणकारी आते थे। शस्त्र से प्रतिरोध करने के अलावा हमने उन समुदायों को अनुलोम विवाह द्वारा आत्मसात् कर लिया, हम उन्हें अपने में लील गए। .... परन्तु अज्ञानता के कारण अनुलोम विवाह को अस्वीकार करने की वजह से मुस्लिम आक्रमणकारियों की लड़कियों को हमने ग्रहण करने से इनकार कर दिया। बाजीराव पेशवा को उनके परिवार ने अपमानित किया, बंगाल में ब्राह्मण रायचंद को अज्ञानी पंडितों ने मुस्लिम लड़की ग्रहण नहीं करने दी जिससे काला पहाड़ का विनाश उत्पन्न हुआ। कश्मीर में भी यह खूब हुआ। ...मुसलमानों के आते-आते तक भारत में 'अनुलोम असवर्ण विवाह' कम या बंद ही हो गया था जिस कारण समाज में घृणा एवं संघर्ष बढ़ गया एवं हिन्दू समाज मुस्लिम लड़कियों को स्वीकारने से परहेज़ करने लगा. .. उधर मुसलमान दनादन हिन्दू लड़कियों को ले लेकर अपनी जनसंख्या बढ़ाते रहे।आज वही मुट्ठी-भर मुसलमान बढ़ के हिन्दू समाज पर, भारत पर ग्रहण की तरह छा गए हैं. यदि अनुलोम विवाह व्यवस्था सुदृढ रहती तो ऐसा कभी नहीं होता. ना ही जातिवाद यानि जातियों के बीच संघर्ष उत्पन्न हुआ रहता जो आधुनिक काल में समाज को विषाक्त कर रहा है। अनुलोम विवाह पद्धति से आपसी विवाह के कारण सभी जातियों में आपसी रक्त संबंध था जिससे conflict होता ही नहीं था।

असवर्ण अनुलोम विवाह से उत्पन्न संतानों का जन्मजात स्वभाव अपनी संस्कृति एवं धर्म तथा पारस्परिकता को लेकर बहुत प्रचण्ड एवं आक्रामक होता है। Hyenas की तरह। ये अपने समुदाय में जबरदस्त एकता में रहते हैं। यदि किसी बाहरी ने एक hyena को चोट पहुँचाई तो सारे hyenas एकजुट होकर टूट पड़ते हैं। मेरा क्या, मेरा क्या, कह के बिखर नहीं जाते, आजकल के हिन्दुओं के जैसे ! 

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