ज्ञान क्या है?
उससे आपके भीतर क्या हो जाता है?
क्या कोई नई दृष्टिं का आयाम पैदा हो जाता है?
क्या चेतना किसी नये स्तर पर पहुंच जाती है?
क्या सत्ता में कोई क्रांति हो जाती है?
क्या आप जो हैं, उससे भिन्न और अन्यथा हो जाते हैं?
या कि आप वही रहते हैं और केवल कुछ विचार और सूचनाएं आपकी स्मृति का अंग बन जाती हैं?
अध्ययन द्वारा प्राप्त ज्ञान से केवल स्मृति प्रशिक्षित होती है, और मन की सतही परत पर विचार की धूल जम जाती है.. इससे ज्यादा कुछ भी नहीं होता है, न हो सकता है..
केंद्र पर उससे कोई परिवर्तन नहीं होता है.. चेतना वही की वही रहती है.. अनुभूति के आयाम वही के वही रहते हैं.. सत्य के संबंध में कुछ जानना और सत्य को जानना दोनों बिलकुल भिन्न बातें हें.. 'सत्य के संबंध में जानना' बुद्धिगत है, सत्य को जानना चेतनागत है..
सत्य को जानने के लिए चेतना की परिपूर्ण जागृति, उसकी अमूच्र्छा आवश्यक है.. स्मृति-प्रशिक्षण और तथाकथित ज्ञान से यह नहीं हो सकता है..
जो स्वयं नहीं जाना गया है, वह ज्ञान नहीं है..सत्य के, अज्ञात सत्य के संबंध में जो बौद्धिक जानकारी है, वह ज्ञान का आभास है, वह मिथ्या है, और सम्यक-ज्ञान में मार्ग में बाधा है. असलियत में जो अज्ञात है, उसे जानने का ज्ञात से कोई मार्ग नहीं है.. वह तो बिलकुल नया है.. वह तो ऐसा है, जो पूर्व कभी जाना नहीं गया है, इसलिए स्मृति उसे देने या उसकी प्रत्यभिज्ञा में भी समर्थ नहीं है..
स्मृति केवल उसे ही दे सकती है- उसकी ही प्रत्यभिज्ञा भी उससे आ सकती है- जो कि पहले भी जाना गया है.. वह ज्ञात की ही पुनरुक्ति है.
लेकिन जो नवीन है-एकदम अभिनव, अज्ञात और पूर्व-अपरिचित- उसके आने के लिए तो स्मृति को हट जाना होगा. स्मृति को, समस्त ज्ञात विचारों को हटाना होगा ताकि नये का जन्म हो सके; ताकि 'जो है' वह वैसे ही जाना जा सके जैसा कि है.
मनुष्य समस्त धारणाएं और पूर्वाग्रह उसके आने के लिए हटाने आवश्यक हैं.. विचार, स्मृति और धारणा-शून्य मन ही अमूच्र्छा है, जागृति है..
इसके आने पर ही केंद्र पर परिवर्तन होता है और सत्य का द्वार खुलता है.. इसके पूर्व सब भटकन है और जीवन-अपव्यय है...और यह स्थिति तभी प्राप्त हो सकती है जब प्राणों सत्य और प्रेम की ज्योति प्रज्वलित हो जाये ...
और इसका सबसे आसान और सुगम साधन है सनातन संस्कारों को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लेना .क्योंकी एकमात्र सनातन विज्ञानं का ज्ञान ही ऐसी शिक्षा और संस्कार दे सकता है...
यह मेरे अपने व्यक्तिगत सोच है , आप इस पर विश्वास करें यह आवश्यक नहीं , यह कोई आदेश या उपदेश नहीं सिर्फ मेरी अभिव्यक्ति है ... आपकी मौज , मानिए या मत मानिए... सभी के स्वतंत्र विचारो का स्वागत है
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