Tuesday, September 15, 2015

भारतीय कला एवं संस्कृति

किसी भी व्यक्ति का सांस्कृतिक महत्त्व इस बात पर निर्भर करता है कि उसने अपने अहंकार से स्वयं को कितना बंधन-मुक्त कर लिया है । वह व्यक्ति भी संस्कृत है, जो अपनी आत्मा को शुद्ध कर दूसरे के उपकार के लिए उसे विनम्र और विनीत बनाता है । कोई व्यक्ति जितना मन, कर्म, वचन से दूसरों के प्रति उपकार की भावनाओं और विचारों को प्रधानता देता है, उसी अनुपात से समाज में उसका सांस्कृतिक महत्त्व बढ़ता है । दूसरों के प्रति की गई भलाई अथवा बुराई को ध्यान में रखकर ही हम किसी व्यक्ति को भला-बुरा कहते हैं । सामाजिक सद्गुण ही, जिनमें दूसरों के प्रति अपने र्कत्तव्य-पालन या परोपकार की भावना प्रमुख हैं, व्यक्ति की संस्कृति को प्रौढ़ बनाती है । यहाँ एक तथ्य ध्यान देने योग्य है की संसार के जिन विचारकों ने इन विचार तथा कार्य-प्रणालियों को सोचा और निश्चित किया है, उनमें भारतीय विचारक सबसे आगे रहे हैं । विचारों के चिन्तन और मनन की गहराई में सनातन धर्म की तुलना अन्य सम्प्रदायों से नहीं हो सकती । भारत के सनातनी विचारकों ने जीवन मंथन कर जो महानतम निष्कर्ष निकाला है, उसके मूलभूत सिद्धांतों में वह कोई दोष नहीं मिलता, जो अन्य सम्प्रदायों या मत-मजहबों में प्रायः बाहुल्य में देखा जा सकता है । सनातन -धर्म महान् मानव धर्म है; व्यापक है और समस्त मानव मात्र के लिए कल्याणकारी है । वह मनुष्य में ऐसे भावनावों और विचारों को जागृत करता है, जिन पर आचरण करने से मनुष्य और समाज स्थायी रूप से सुख और शांति का अमृत-घूँट पी सकता है । सनातन संस्कृति में जिन उदार तत्वों का समावेश है, उनमें तत्वज्ञान के वे मूल सिद्धांत रखे गये हैं, जिनको जीवन में ढालने से आदमी सच्चे अर्थों में 'मनुष्य' बन सकता है । सनातन संस्कृति कहती है ''हे मनुष्यों! अपने हृदय में विश्व-प्रेम की ज्योति सदैव जलाये रक्खो, सबसे प्रेम करो, अपनी भुजाएँ फैलाकर कर प्राणीमात्र को प्रेम के पाश में बाँध लो, ब्रहमाण्ड के कण-कण को अपने प्रेम की सरिता से सींच दो । विश्व प्रेम वह अलौकिक एवं रहस्मय दिव्य रस है, जो एक हृदय से दूसरे को जोड़ता है । यह एक अलौकिक शक्ति सम्पन्न जादू भरा मरहम है, जिसे लगाते ही सबके रोग दूर हो जाते हैं । जीना है तो आदर्श और उद्देश्य के लिये जीओ । जब तक जीवित रहो विश्व-हित के लिए जिओ,अपनी सांस्कृतिक सम्पत्ति को सदैव सम्हाले रक्खो,सबको अपना समझो और अपनी वस्तु की तरह विश्व की समस्य वस्तुओं को अपने प्रेम की छाया में रखों, सबको आत्म-भाव और आत्म-दृष्टि से देखो ।

No comments:

Post a Comment